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pakistan की तकदीर लिखी कई जाटों ने

20 हजार देने गया pakistan, बंटवारे के समय गए थे छूट

जी हां यह कहानी एक ऐसे इंसान की है जिसने बीस हजार देने के लिए पाकिस्तान pakistan का वीजा बनवाया, और वहां जाकर पैसे के वारिस को खोजा और उसे 20 हजार रुपए लौटा दिये। आज भी इस दुनियां में इस तरह की खबरें आपको इंसानियत पर भरोसा करने के लिए मजबूर करती है। अगर आप भी पूरी कहानी जानना चाहते है तो बने रहे हमारे साथ जाट परिवार के साथ जुडे रहें।

सलाउद्दीन कुरूक्षेत्र के ठसका गांव में रहते थे तब उनकी उम्र लगभग 19 साल की थी लेकिन बंटवारे के समय वे पाकिस्तान pakistan चले गए और रह गया उनका 20 हजार रुपए एक बैंक में । बैंक सेठ हंसराज जी का था। बंटवारे के समय की स्थितियों से सभी वाकिफ है । अपने पैसों को बैंक से निकाल भी ना सकें सलाउद्दीन और पाकिस्तान pakistan चले गए। लेकिन सेठ हंसराज ने अपना ईमान नहीं खोया। उन्होंने अपनी तलाश जारी रखी । और सभी स्थितियों सही होने पर अपना पासपोर्ट वीजा बनवाया और उनकी रकम लौटाने के लिए चल दिए पाकिस्तान pakistan । यह रकम चांदी के सिक्कों के रूप में थी जो उन्होंने वापस की। सलाउद्दीन ने उनका शुक्रिया अदा किया भारत पाकिस्तान के मजबूत रिश्तो की दुआ मांगी।

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सलाउद्दीन अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं है जो कि भारत की यादों में खोए रहते है समय समय पर भारत और पाकिस्तान से ऐसे वीडियों सामने आते रहते है जो अपने पुराने मुल्कों को याद करते रहते है। इसके लिए कुछ युवाओं ने एक फेसबुक पेज भी बनाया है जिसका नाम है हरियाणवी लैंग्वेज , कल्चर एंड हिस्ट्री एकेडमी ऑफ पाकिस्तान। इस फेसबुक पेज पर हरियाणा से पाकिस्तान गए बुजुर्गों के साक्षात्कार के वीडियों अपलोड किए जाते रहते है। इन वीडियों से पता चलता है कि बंटवारे के समय ऐसे लोगों की कमी नहीं थी जिन्होंने मुस्लिम परिवारों को अपने घरों में छुपा कर रखा या फिर पाकिस्तान पहुंचाने के लिए अपनी जान तक की बांजी लगाई। भारत के कुछ गांवों में आज भी ऐसे मुस्लिम परिवार मिल जाएगे जिन्होंने बंटवारे के समय मुस्लिम परिवारों को अपने गांव में छुपा कर रखा और आज वे लोग आराम से गांव में ही अपना जीवन व्यत्ति कर रहे है। हरियाणवी कल्चर की छाप आज भी पाकिस्तान के उन जगहों पर मिलती है जहां हरियाणवी बसते हैं । हुक्के की शान, सिर पर पगडी हरियाणा के गौरव की प्रतीक आज भी पाकिस्तान के कई जगहों पर देखी जा सकती है।

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लियाकत अली खां की पाईं पाईं चुकाई थी जांगल खेडी वालो ने
लियाकत अली खां पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने थे। पानीपत के जीटी रोड के किनारे शहर से लगता हुआ गांव है नांगल खेडी। कुछ लोग इसे गढ़ी भी कहते हैं। करनाल मुजज्फर नगर के मुस्लिम शासक लियाकत अली खां बंटवारे के बाद पाकिस्तान जा रहे थे । उनकी भूमि नांगल खेडी के जाट किसानों के पास थी। गढी के किसानों को उनकी जमीन की कीमत चुकाना मुश्किल था लेकिन पाकिस्तान के एक प्रसिद्ध उद्यमी ने उनकी मदद की और गढी के किसानों ने लियाकत अली खां की पाईं पाईं चुकाईं।

पाकिस्तान की तकदीद लिखी कई जाटों ने

जी हां लियाकत अली खां के अलावा पाकिस्तान की तकदीर लिखने वालों में कई हरियाणवी भी शामिल थे जिसमें एक नाम सैफ अली खां के चाचा इस फंदियार अली खा पटौदी का है जो कि पाकिस्तानी सेना के मेजर जनरल रहे । उनके पिता मेजर जनरल नवाबजादा मुहम्मद अली पटौदी , मंसूर अली खान के पिता इफ्तियार अली खान के छोटे भाई थे।

हिन्दुस्तान पाकिस्तान का जब बंटवारा हो रहा था तो नवाबजादा ने पाकिस्तान जाने का विकल्प चुना। जबकि उनके बड़े भाई अपने भारतीय प्रेम की वजह से यहीं रूग गए थे। पाकिस्तान की पूर्व विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार भी हरियाणा के सोनीपत की रहने वाली थीं। उनके पूर्वज जाट थे जो मुस्लिम बन गए थे। इसके अलावा पाकिस्तान क्रिकेट सितारे शोएब मलिक भी सोनीपत के ही जाट परिवार के वंशज हैं । इस कारण आप समझ ही गए होंगे पाकिस्तान के विकास में भी जाटों का कितना बड़ा योगदान है।

आपको बता दें कि पाकिस्तान में ढाईं करोड लोग हरियाणवी भाषा का प्रयोग करते हैं। पाकिस्तान में इन्हें रांगडी कहा जाता है, यानी उतने ही लोग जितने हरियाणा में बोलते हैं। हरियाणवी को वहां रांगडी इसलिए कहा जाता है क्योंकि हरियाणा में जो राजपूत मजबह बदलकर मुसलमान बने थे वे रांगड कहा जाता था। उनमें से ज्यादातर ने बंटवारे के समय पाकिस्तान जाने का विकल्प चुना था। लेकिन वहां जाने के बाद भी उनकी बोलचाल की भाषा और संस्कृति हरियाणवी ही रही जो वहां आज भी रांगडी कही जाती है।

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