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maharaja surajmal को जाट समाज ने दी भावभिनी श्रद्धांजलि

महाराजा सूरज मल जयंति
महाराजा सूरजमल जयन्ती

समाज के प्रमुख व्‍यक्तियों ने किए श्रद्धा सुमन अर्पित

हिण्डौनसिटी । जाट समाज jaat samaj द्वारा maharaja surajmal जाट छात्रावास हिण्डौनसिटी मे महान योद्धा maharaja surajmal की जयन्ती मनाई गई । maharaja surajmal जन्मोत्सव की अध्यक्षता जाट समाज चौरासी के उपाध्यक्ष रामभरोसी डागुर ने की । इस अवसर पर जाट समाज चौरासी महामंत्री अमरसिंह बैनीवाल ने बताया कि महाराजा सूरजमल ने हिन्दू धर्म की रक्षा मे अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया, उन्होंने सैकड़ों युद्ध जीते।

क्‍या कहा जाट महासभा के जिला अध्‍यक्ष करतार सिंह चौधरी ने

राजस्थान युवा जाट महासभा करौली के जिलाध्यक्ष करतार सिंह चौधरी ने बताया कि महान योद्धा महाराजा सूरजमल का जन्म 13 फरवरी 1707 में हुआ । इतिहास में उत्तर भारत में जिन राजाओं का विशेष स्थान रहा है, उनमें महाराजा सूरजमल का नाम बड़े ही गौरव के साथ लिया जाता है।महाराजा सूरजमल जी का जन्म 13 फरवरी 1707 को जटवाड़ा के राजा बदन सिंह के घर मां देवकी की कोख से हुआ था। महाराजा सूरजमल देश के एकमात्र महाराजा थे जिन्होंने दो बार दिल्ली को मुगलो से आजाद करवाने के लिए 1753 व 1763 में आक्रमण किया और उन्हें हराया । महाराजा सूरजमल जी ने 1757 में अकेले ही अब्दाली को मथुरा, वृन्दावन, कुम्हेर, भरतपुर, बल्लभगढ़ समेत ब्रज को बचाने के लिए लोहा लिया और अंत में अब्दाली उनके खौफ से भाग खड़ा हुआ था । महाराजा सूरजमल जी का राज वर्तमान के तीन राज्यो राजस्थान,हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजधानी दिल्ली के बहुत बड़े हिस्से में फैल गया था । महाराजा सूरजमल जी एक ऐसे राजा थे जिन्होंने मराठो की दिल्ली जितने में दोनो बार मदद की। और 1757 में अब्दाली के विरुद्ध महाराज को स्वयं किसी से मदद न मिलने के बाद भी 1761 में पानीपत संग्राम में मराठो की मदद करने आगे आये। उनकी उचित सलाह न मानने के कारण मतभेद हुए लेकिन फिर भी वे साथ रहे, परन्तु उन्हें भाउ द्वारा बन्दी बनाने की साजिश रची गयी तो खुद मराठो ने उन्हें जाने का आग्रह किया तो जाना पड़ा। इसके बावजूद उन्होंने युद्ध के पश्चात हजारों मराठो, बच्चो व औरतों को शरण दी और उनकी रक्षा की।

महाराजा सूरजमल ने कराया था मंदिरों का निर्माण

महाराजा सूरजमल जी ने मथुरा वृन्दावन समेत उत्तर भारत के बहुत से उन मन्दिरो का निर्माण करवाया जो मुगलो व अब्दाली ने तोड़ दिए थे और महाराजा सूरजमल ने अनेको दुष्ट मुगलों को हराया और नतमस्तक होने वाले क सामने वे सनरत रखते थे कि वह दुष्ट कभी भी हिन्दू मन्दिरो, गौमाता, पीपल के पेड़, अबला और साधु संतों व आम जनता को नुकसान न पहुंचाएगा और न ही लूटेगा । महाराजा सूरजमल जी के राज्य में गौहत्या करने वाले को सरेआम मृत्युदंड देने का प्रावधान था और उनके खौफ से अवध के नवाब ने भी अपने राज्य में गौहत्या पर प्रतिबंध लगा दिया था ।

महाराजा सूरजमल जी ने दिल्ली के चारो के और व दिल्ली के हिस्सों को जीतकर मुगल साम्राज्य को इतना छोटा बना दिया था कि लोग मुगलो की खिल्ली उड़ाने लग गए थे।महाराजा सूरजमल जी ने बयाना की उषा मस्जिद को तोड़कर फिर से उषा मन्दिर में परिवर्तित कर दिया था । महाराजा सूरजमल जी ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि मन्दिर की जगह बने मस्जिद के हिस्से को तोड़कर फिर से श्रीकृष्ण भगवान का मंदिर बनवा दिया था ।

महाराजा सूरजमल जी का अजेय लोहागढ़ किला देश का एकमात्र ऐसा किला है जिस पर मुगल अफगानों ने कई आक्रमण किये व उनके पुत्र रणजीत सिंह के शासनकाल में अंग्रेजो ने 13 आक्रमण किये पर हर बार उन्हें मुंह की खानी पड़ी। लोहागढ़ किला हमेशा आजाद रहा। उनके राज्य में ऊंची आवाज में अजान देने पर प्रतिबंध था। महाराजा सूरजमल जी ने हिन्दू विरोधी दुष्ट सआदत खां को हराकर उससे सरेआम हिन्दुओ के आगे नाक रगड़वाई थी।

महाराजा सूरजमल जी ने उस समय अलीगढ़ (साबितगढ़) को जीतकर उसका नाम बदलकर रामगढ़ कर दिया था। महाराजा सूरजमल जी ने अपने जीवनकाल में लगभग 80 युद्ध लड़े थे जिनमें वे हमेशा विजेता रहे, साथी राजस्थान युवा जाट महासभा प्रदेश सचिव के के चौधरी में बताया कि महाराजा सूरजमल जी को उत्तर भारत के भगवान, हिंदुआ सूरज, हिन्दू ह्रदय सम्राट और ब्रजराज के नाम से जाना जाता है। महाराजा सूरजमल जी एकमात्र ऐसे राजा थे जिन्होंने विदेशी आक्रांताओं से पीड़ित लोगों को हमेशा शरण दी थी और उनकी मदद की थी। महाराजा सूरजमल जी ने बगरू के युद्ध में एक साथ 7 सेनाओं को हरा दिया था और ईश्वरी सिंह को जयपुर की गद्दी पर बैठाया था। महाराजा सूरजमल जी दोनो हाथों से तलवार चलाने में माहिर थे।

maharaja suraj mal jayanti
maharaja surajmal ki sharsha suman arpit kerte hue jat samaj ke log

आगरा पर की थी विजय हासिल

महाराजा सूरजमल जी ऐसे प्रथम शासक थे जिन्होंने मुगलो की पुरानी राजधानी आगरा को जीतकर अपने कब्जे में कर लिया था। महाराजा सूरजमल जी 25 दिसम्बर 1763 को वीरगति को प्राप्त हुए थे। हिंडौन नदी के किनारे टहलते हुए झाड़ियों के पीछे छुपे मुगल अफगान सैनिकों ने पीछे से गोलियों की बौछार कर दी थी और धोखे से महाराज की हत्या कर दी थी। महाराजा सूरजमल जी के ज्येष्ठ पुत्र महाराजा जवाहर सिंह जी ने 1764 में दिल्ली पर फिर से आक्रमण करके मुगलो को हरा दिया था व सन्धि में मुगल बादशाह की बेटी का डोला लिया था। महाराजा सूरजमल जी के बेटे महाराजा रणजीत सिंह जी ने 1805 में अंग्रेजो को 13 बार हराया था।

महाराजा सूरजमल जी से उत्तर भारत के लोगो में एक अवतारी देवता की तरह भावनाएं जुड़ी हुई है। इस अवसर पर जाट समाज चौरासी के उपाध्यक्ष रामभरोसी डागुर , महामंत्री अमरसिंह बैनीवाल , राज.युवा जाट महासभा के प्रदेशसचिव के.के.चौधरी , महाराजा सूरजमल यूथ बिग्रेड करौली जिलाध्यक्ष देवेंद्र चौधरी , राज.युवा जाट महासभा करौली के जिलाध्यक्ष करतारसिंह चौधरी , पार्षद बलबन्त बैनीवाल , ओमवीर जाट , जवाहर सिंह , भूपेन्द्र सिंह , आलोक देशवाल , अजय जाट , संदीप सोलंकी आदि मौजूद रहे ।

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